दीख गई परिवार की एकता
जा रहे एक सैर पर परिवार जन,
आए घर पर कहा,
‘रखोगे ध्यान धेनु का अनुज तुम?’
कहा अनुज ने कृषि-कार्य का कुछ ध्यान धरते,
‘है बहुत मन किन्तु नहीं जीवन-क्षण!
काम है मुझे बहुत, भरपूर,
रख लीजिये एक मज़दूर!’
पर-घटित को आत्मानुभूत करते,
दृष्टा ने देखा दो भाइयों का छद्म-प्रेम!
मुझसे उनका सम्मान चाहने वाले,
अनुज द्वारा किया गया सम्यक-मान!
याद आई एक लोक-कथाः
लक्ष्मण के सर्वस्व निछावर करने की —
अग्रज को न हो कठिनाई,
नहीं किया अभ्यास-कार्य
व स्थगित की पढ़ाई।
कहा गृहलक्ष्मी ने,
‘ज्येष्ठ हो गए वृद्घ,
हुई यदि अस्वस्थता, मैं न रख पाऊँगी ख्याल,
न कर पाऊँगी खातिर!’
दृष्टा के श्रवणों में गूँज उठे उलहाने,
जब एक बार ज्येष्ठ ने मुझसे किया अनुरोध — कीचड़-से समलम् जल में स्नान करने का!
मना करने पर मैंने सुने,
गृहलक्ष्मी के ताने,
उसने कहा, ‘पुत्र तूने दिया हृदय-आघात,
न मानी तात की यह बात!’
आज दीख गया लक्ष्मी के मन का,
ज्येष्ठ के प्रति आदर!
आया समझ,
परिजनो में है,
श्वान-समाज सरीखी एकता!
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